लालची मछुआरा और उसकी पत्नी की कहानी | Lalchi Machhiwara Ki Kahani
एक नदी के किनारे एक छोटा सा गाँव था, वहाँ लोग आजीविका के लिए मछली पकड़ते थे। हरि प्रसाद नाम का एक लालची मछुआरा अपने बेटे के साथ एक दिन सुबह जल्दी नदी के किनारे पहुंचा।
अरे! हम यहां गाँव के किसी और मछुआरे के आने से पहले पहुंचे है इसलिए आज सारी मछलियां हम पकड लेंगे । लेकिन देखो सोमू, तुम मुझे परेशान मत करो, जाओ, उस तरफ खेलो। बहुत अच्छा, पिताजी।
हरि ने अपनी मछली पकड़ने वाली छड़ी को नदी में डाला और मछली के फंसने का इंतजार करने लगा। जल्द ही, मछली पकड़ने वाली छड़ी के हुक ने कुछ पकड़ा। ऐसा लगता है कि कोई बड़ी मछली पकड़ में आई है। उसने जल्दी से रॉड को बाहर निकाला लेकिन लालची मछुआरा उसे हिला नहीं पा रहा था।
लालची मछुआरा ने सोचा बाकि मछुआरों के आने से पहले मुझे इस बड़ी मछली को पकड़ना होगा इसलिए आज गाँव के सभी मछुआरों को यंहा आने से रोकना होगा, उसने अपने बेटे सोमू को पुकारा, "सोमू... सोमू"
हाँ पिता जी। जाओ और अपनी माँ से कहो कि हुक पर एक बड़ी मछली है, वह बहुत भारी है। मुझे देर हो जाएगी इसलिए गाँव के सभी मछुआरों को किसी तरह नदी पर आने से रोकें। नहीं तो सब हिस्सा मांगेंगे, जल्दी जाओ। ठीक है पापा, मैं जा रहा हूँ।
सोमू ने अपनी माँ को सारी बात बताई और सोमू की माँ ने बगल की महिलाओं के साथ झगड़ा शुरू कर दिया, शीला… शीला, मैंने अपनी सबसे सुंदर नीली साड़ी यहाँ सुखाने के लिए रखी थी, कहाँ है? जरूर तूने उठाई होगी । कल शाम, मैंने तुम्हें इधर घूमते हुए देखा था। पिछली बार तुमने मेरे कुछ बर्तन चुराए थे और अब यह साड़ी, तुम चाहते हो कि हम बर्बाद हो जाएं।
लालची मछुआरा की कहानी (Lalchi Machhiwara Ki Kahani)
शीला दंग रह गई क्योंकि उस पर चोरी का आरोप लगाया जा रहा था। वह चुप नहीं रहने वाली थी, क्या तुम पागल हो गयी हो?
मैं तुम्हारी चीजें क्यों ले जाऊं? क्या हम चोर लगते हैं? क्या तुम सोच रही हो कि तुम बहुत अमीर हो कि दूसरे आपके कपड़े चुरा लेते हैं?
कुछ ही देर में पूरे गांव के लोग वहां जमा हो गए। किसी भी ग्रामीण ने मछली पकड़ने या उस नदी में जाने के बारे में नहीं सोचा जो उसके उद्देश्य की पूर्ति करती थी। विवाद को सुलझाने के लिए गांव के मुखिया को बुलाया गया था।
इधर नदी के किनारे लालची मछुआरा हरि मछली पकड़ने की छड़ी को खींचकर थक गया था। इसलिए उसने सोचा की हुक में क्या फंस गया है? हुक बाहर नहीं आ रहा है इसलिए उसने देखने के लिए नदी में कूदने का फैसला किया।
लालची मछुआरे ने देखा की मछली पकड़ने की छड़ी का हुक दो चट्टानों के बीच फंस गया था इसलिए यह बाहर नहीं निकाल रहा है । हरि ने एक चट्टान पर प्रहार किया जिससे उसके सिर पर एक बड़ी गांठ हो गयी ।
उधर दूसरी ओर ग्राम प्रधान ग्रामीणों से तथ्य पूछ रहा था। लोग शीला के घर की तलाशी लेने लगे।
ग्राम प्रधान ने ग्रामीणों से पूछा - अच्छा, क्या किसी को कुछ मिला?
गाँव वालो ने कहा - नहीं ग्राम प्रधान साहब, शीला के घर में उसके स्वय के सामान के अलावा और कुछ नहीं है।
ग्राम प्रधान ने कहा की यानी यह महिला शीला पर चोरी का झूठा आरोप लगा रही है, उसे सजा मिलनी चाहिए.
ग्राम प्रधान ने मछुआरे की पत्नी से कहा आपने शीला को झूठा बदनाम करने की कोशिश की है, इसलिए आपको एक महीने के लिए उसके घर में मुफ्त में काम करना होगा। क्या आपको यह समझ आया?
शाम को लालची मछुआरे की पत्नी शीला के घर का सारा काम करके अपने घर लौटी, तो हरि पश्चाताप और पीड़ा से पछता रहा था। मैं मूर्ख हूं और मैंने भी तुम्हें अपने पाप में भागीदार बनाया है। हम इस मूर्खता को कभी नहीं दोहराएंगे
लालची मछुआरा की कहानी (Lalchi Machhiwara Ki Kahani ka moral)
लालची मछुआरा और उसकी पत्नी की कहानी से हमे यह नैतिक शिक्षा मिलती है की कभी भी लालची मत बनो
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